मुंबई से भोपाल हवाईजहाज से पहुंची, भोपाल से संदलपुर के बाद सीहोर जिले के जामुनझील और सेवनिया सेवा कुटीर भी पहुंची…
प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की धर्मपत्नी अंजलि तेंदुलकर एवं उनकी बेटी सारा तेंदुलकर बेहद गोपनीय तरीके से सीहोर जिले के जामुनझील एवं सेवनिया में संचालित सेवा कुटीर में पहुंची। इससे पहले वे मुंबई से हवाईजहाज से भोपाल पहुंची। यहां से कार द्वारा पहले तो देवास जिले के संदलपुर पहुंची। यहां से सीहोर जिले में संचालित जामुनझील और सेवनिया सेवा कुटीर भी पहुंची।
कार्यक्रम इतना गोपनीय था कि पुलिस प्रशासन को भी इसकी सूचना नहीं दी गई। गौरतलब है कि सीहोर जिले के पांच कुटीरों को सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन द्वारा गोद लिया गया है और उन्हें मदद की जाती है। इससे पहले सचिन तेंदुलकर भी सीहोर जिले की इन कुटीरों में पहुंचे थे। उनका कार्यक्रम भी गोपनीय रखा गया था।
सीहोर जिले में नयापुरा, खापा, बेलपाटी, जामुनझील और सेवनिया में सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन द्वारा कुटीर संचालित की जाती है। इन कुटीरों में यहां के बच्चों की सुबह-शाम पढ़ाई कराई जाती है। इस दौरान बच्चों को सुबह-शाम श्रीराम, श्रीकृष्ण के भजन सुनाने के साथ ही स्वामी विवेकानंदजी के जीवन से प्रेरित बातें भी बताई जाती है। बच्चे यहां पर पढ़ाई के साथ-साथ ड्राईंग एवं अन्य गतिविधियां भी करते हैं। इन कुटीरों में 3 वर्ष से 15 वर्ष के बच्चों को पढ़ाया जाता है। सुबह-शाम इन्हें यहां पर निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराया जाता है और सुबह 7 से 10 एवं शाम को 4 से 6 बजे तक इन्हें पढ़ाया भी जाता है। इस बीच में जो बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं वे स्कूल भी जाते हैं।
आदिवासी अंदाज में हुआ गांव में स्वागत-
अंजलि तेंदुलकर एवं सारा तेंदुलकर जब ग्राम जामुनझील एवं सेवनिया पहुंची तो यहां पर ग्रामीणों ने उनका स्वागत भी बेहद शानदार तरीके से किया। आदिवासी ढोल एवं तीर-कमान से दोनों का स्वागत सत्कार किया गया। वे भी इस स्वागत से अभिभूत नजर आईं। हालांकि दोनों का कार्यक्रम इतना ज्यादा गोपनीय रखा गया कि मीडिया को भी इसकी खबर नहीं मिली। पुलिस प्रशासन तक को भी खबर नहीं की गई। ग्रामीणों को भी ऐनवक्त पर बताया गया तो वे अपनी तैयारियों के साथ उनका स्वागत करने पहुंचे।
इन्होंने की थी स्थापना-
सेवा कुटीरों की स्थापना विनायक लोहानी द्वारा की गई थी। इसके बाद सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन ने इन्हें गोद ले लिया। अब सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन इन कुटीरों को संचालित करता है। इसके लिए उन्होंने इन गांवों में मकानों में इसकी शुरूआत की थी। यहां पर बच्चों को पढ़ाई, भोजन के साथ ही संस्कारों की भी शिक्षा दी जाती है।