रबी फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई प्रबंधन करें, समय-विधि जान लें

– अमित शर्मा, लाड़कुई/भेरूंदा

जिले के अधिकांश क्षेत्रों में रबी फसल गेहूं, चना, मसूर, अलसी, तिवड़ा, सरसों आदि की बुवाई को 25-*30 दिन हो चुकी है। अच्छी पैदावार के लिए रबी फसलों की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई प्रबंधनअवश्य करें।

वरिष्ठ कृषिवैज्ञानिक के अनुसार गेहूं की फसल में क्रांतिक अवस्थाएं किरीट जड़, कल्ले बनने का समय, गभोट, पुष्पन व दुग्ध अवस्था। गेहूं की फसल में एक सिंचाई उपलब्ध होने पर किरीट जड़ अवस्था (20 से 25 दिन) पर सिंचाई करें। दो सिंचाई उपलब्ध होने पर किरीट जड़ (20 से 25 दिन) एवं पुष्पन अवस्था ( 80 से 85 दिन) पर (80 सिंचाई करें। तीन सिंचाई उपलब्ध होने पर किरीट जड़ (20 से 25 दिन) गभोट अवस्था (60 से 65 दिन) एवं दुग्ध अवस्था (100 से 105 दिन) पर सिंचाई करें। चार सिंचाई उपलब्ध होने पर किरीट जड़ (20 से 25 दिन) कल्ले फूटते समय (40 से 45 दिन), पुष्पन अवस्था (80 से 85 दिन) एवं दुग्ध अवस्था (100 से 105 दिन) पर सिंचाई करें।

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि चना, मसूर, मटर, सरसों व जौ चने की फसल में प्रथम सिंचाई फूल आने से पहले (40 से 45 दिन) एवं द्वितीय सिंचाई घंटी में दाना बनते समय (95 से 100 दिन) पर करें। मसूर में प्रथम सिंचाई शाखा बनते समय (40 से 45 दिन) एवं द्वितीय सिंचाई घंटी में दाना बनते समय (80 से 85 दिन) पर करें। मटर में प्रथम सिंचाई फूल आने से पहले (40 से 45 दिन) एवं द्वितीय सिंचाई दाना बनते समय (80 से 85 दिन) पर करें। सरसों में प्रथम सिंचाई फूल आने से पहले (40 से 45 दिन) द्वितीय सिंचाई फलियां बनते समय (60 से 65 दिन) एवं तृतीय सिंचाई फलियों में दाना भरते समय (80 से 50 दिन) पर करें। जौ में प्रथम सिंचाई कल्ले फूटते समय (35 से 40 दिन) पर एवं दूसरी सिंचाई दुग्ध अवस्था पर करें।

कृषि वैज्ञानिक के अनुसार सिंचाई कब व कैसे करें खेत की मिट्टी, फसल की किस्म, वृद्धि काल, मिट्टी में जीवांश की मात्रा आदि का ध्यान रखते हुए सिंचाई की योजना बनाएं। अधिकतर फसलों में 50% उपलब्ध जल रहने पर करें। सिंचाई के लिए स्रोत से पानी सीधे खेत में न छोड़ें। खेत में लंबाई ढलान की ओर 4 से 6 मीटर नालियां बनाएं और मेढ़ के सहारे मुख्य नाली के क्रम से सिंचाई जल छोड़ें।

सिंचाई का समय... पौधों की बाहरी दशा (जैसे पत्तियों का मुरझाना, पत्तियों का रंग कम हरा होना) व मिट्टी के भौतिक गुण के आधार पर सिंचाई के समय का पता लग सकते हैं। खेत की मिट्टी में टेन्शियोमीटर का उपयोग कर मृदा नमी का पता लगा सकते हैं। सिंचाई क्रांतिक अवस्थाओं में ही करें। भूमि, जलवायु व फसल की मांग के आधार पर करें। प्रथम सिंचाई बहाकर ही करें। पानी की उपलब्धता कम हो तो स्प्रिंकलर विधि अपनाएं।

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