गोपी प्रेम की ध्वजा है ~ प्रेम परमानंद महाराज

अमित शर्मा, लाड़कुई/भेरूंदा

पान गुराडिया में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथा व्यास प्रेम परमानंद महाराज ने कहा गोपियां प्रेम की ध्वजा है, यह जो अपनी समस्त इंद्रियों से कृष्ण रस का पान करे वो गोपी, जो अपने प्रेम को गुप्त रखे वो गोपी। जो कृष्ण के सुख के लिए कृष्ण का वियोग स्वीकार करे वो गोपी।
“तत् सुखे सुखित्वम इति प्रेम लक्षणम ।।”
गोपियों के पास प्रेम की पूंजी है, जिसके बल पर वो त्रिलोकीनाथ कृष्ण को छछिया भरी छाछ पर नाच नचा देती है, कृष्ण को अपनी याद में रोने को विवश कर देती है।

कबीर दास जी कहते है।
कबीरा कबीरा क्या करे ? जा जमुना के तीर !
एक एक गोपी प्रेम पे, बहिगे कोटि कबीर !!
इस कलिकाल में मीरा बाई ने द्वारकाधीश को प्राप्त किया।
प्रेम की सरिता का जल है मीरा।
प्रेम नध्यः नीरा इति मीरा।

कथा में बड़ी संख्या में भक्तों के साथ सलकनपुर देवी धाम के मुख्य पुजारी पं अनिल नायक एवं पूर्व अध्यक्ष पं हरिकृष्ण नायक सपरिवार उपस्थित थे। यह जानकारी आयोजक ओमप्रकाश शर्मा, हेमंत शर्मा ने प्रदान की।

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