विशाल पथ संचलन मे स्वयंसेवको ने किया कदमताल…
– अमित शर्मा, लाड़कुई/भेरूंदा
प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भैरुंदा खण्ड का विशाल पथ संचलन 13 अक्टूबर दिन रविवार को सायं 04 से कृषि उपज मंडी प्रांगण भैरुंदा से निकला गया। इस दौरान गणवेशधारी स्वयंसेवक घोष की ध्वनि पर कदमताल करते हुए निकले भैरुंदा खण्ड का पथ संचलन कृषि उपज मंडी प्रांगण भैरुंदा से सायं 04 बजे प्रारंभ हुआ जो कि मेन रोड होते हुए दुर्गा मंदिर चौराहे, जे पी मार्केट, रॉयल मार्केट, गाँधी चौक, किसान मोहल्ला, भदभदा रोड से मेन रोड, सीहोर नाके से यू टर्न लेकर, बस स्टेण्ड, दुर्गा चौक, शास्त्री कॉलोनी, गणेश चौक से शनि मंदिर से पुनः कृषि उपज मंडी प्रांगण मे समापन हुआ।
जहा कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मनोज शास्त्री ने कहा कि संघ शक्ति कलयुगे अर्थात कलयुग में संघ की शक्ति ही महत्वपूर्ण है, संघ है तो हमारा वर्तमान भी सुरक्षित है और भविष्य भी। वही कार्यक्रम में अपने बौद्धिक से स्वयंसेवको को संबोधित करते हुए।। प्रांतीय अधिकारी बृज किशोर भार्गव ने कहा की संघ आज अपने 99 वें वर्ष पूर्ण कर, 100 वे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इन 100 वर्षो की यात्रा में संघ के माध्यम से कई सारे परिवर्तन हुए। जिस देश में लोग अपने आप को हिंदू कहने में शर्म महसूस करते थे, आज इतने वर्ष बाद गर्व से कहते है कि हम हिंदू है। हर स्वयंसेवको हस्ताक्षर हिंदी भाषा मे करना चाहिये। वहीं संघ द्वारा समाज परिवर्तन के पांच बिंदु को लेकर बताया की आज संघ समाज को कुटुंब परिवार , नागरिक शिष्टाचार , स्व का बोध, पर्यावरण और समरसता को लेकर कार्य कर रहा है। परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयदशमी उत्सव पर सम्बोधित करते हुए कहा की प्रामाणिकता से, नि:स्वार्थ भावना से देश, धर्म, संस्कृति व समाज के हित में जीवन लगा देने वाले ऐसी विभूतियों को हम इसलिए स्मरण करते हैं कि उन्होंने हम सब के हित में कार्य तो किया है ही, अपितु अपने स्वयं के जीवन से हमारे लिए अनुकरणीय जीवन व्यवहार का उत्तम उदाहरण उपस्थित किया है। अलग-अलग कालखंडों में, अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में कार्य करने वाले इन सबके जीवन व्यवहार की कुछ समान बातें थीं। निस्पृहता, निर्वैरता व निर्भयता उनका स्वभाव था। बांग्लादेश मे हिन्दुओ के साथ घटित घटना पर भी प्रकाश डाला। बांग्लादेश में जो हिंसक तख्तापलट हुआ, उसके तात्कालिक व स्थानीय कारण उस घटनाक्रम का एक पहलू है। परन्तु तद्देशीय हिन्दू समाज पर अकारण नृशंस अत्याचारों की परंपरा को फिर से दोहराया गया। उन अत्याचारों के विरोध में वहां का हिन्दू समाज इस बार संगठित होकर स्वयं के बचाव में घर के बाहर आया, इसलिए थोड़ा बचाव हुआ। परन्तु यह अत्याचारी कट्टरपंथी स्वभाव जब तक वहां विद्यमान है, तब तक वहां के हिन्दुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर खतरे की तलवार लटकी रहेगी। इसीलिए उस देश से भारत में होने वाली अवैध घुसपैठ व उसके कारण उत्पन्न जनसंख्या असंतुलन देश में सामान्य जनों में भी गंभीर चिंता का विषय बना है।
संस्कार क्षरण के दुष्परिणाम–
महिलाओं की ओर देखने की हमारी दृष्टि – “मातृवत् परदारेषु” – हमारी सांस्कृतिक देन है जो हमें हमारी संस्कार परम्परा से प्राप्त होती है। परिवारों में, तथा समाज जिन से मनोरंजन के साथ ही जाने-अनजाने प्रबोधन भी प्राप्त कर रहा है, उन माध्यमों में इस का भान न रहना, इन मूल्यों की उपेक्षा या तिरस्कार होना बहुत महंगा पड़ रहा है। हमें परिवार, समाज तथा संवाद माध्यमों के द्वारा इन सांस्कृतिक मूल्यों के प्रबोधन की व्यवस्था को फिर से जागृत करना होगा।
नगर मे पुष्पों से हुआ स्वागत–
नगर के नागरिकगणो ने जगह – जगह मंच लगाकर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। नगर की सडके पुष्पों से पटी हुई दिखायी दी।