होली से जुड़ी अनोखी परंपरा, यहां होती है मेघनाद की पूजा; दी जाती है बलि…

वर्षो से किया जा रहा परंपरा का निर्वहन- आदिवासी गोंड समाज ने लाड़कुई में प्रतिवर्षानुसार की मेघनाद की पूजा-अर्चना…

भैरुंदा– होली के दूसरे दिन यानी दूज पर आदिवासी गौड समाज के द्वारा वर्षों से चली आ रही एक परंपरा का निर्वहन किया जाता है। जिसमें सामाजिक जनों के द्वारा मेघनाथ को इष्ट देव मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। क्षेत्र के ग्राम लाड़कुई में इसी परंपरा के तहत मेघनाद चौक पर मेले का आयोजन कर पूजा अर्चना कर बलि चढ़ाई जाती है। जिसमें सभी सामाजिक बंधु बढ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

बता दे कि होली को रंगों का त्यौहार कहा जाता है। जिसे आपसी सौहार्द के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस त्यौहार से जुड़ी परम्पराएं आज भी समाज में विद्यमान है। जिनमें से एक है मेघनाद बाबा की पूजा-अर्चना करना। मध्यप्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बैतूल, झाबुआ अलीराजपुर, डिंडोरी के साथ सीहोर जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले गोंड आदिवासी समाज के लोग मेघनाद बाबा को अपना देवता मानते है और उनकी पूजा करते हैं।

मेले का आयोजन…

भैरुंदा जनपद क्षेत्र के कई ग्राम मे अलग-अलग तिथियो में मेघनाद बाबा को प्रसन्न करने के लिए आदिवासी प्रतिवर्ष होली के बाद एक दिवसीय मेले का आयोजन करते हैं। आज ग्राम लाड़कुई मे गौंड आदिवासी समाज द्वारा रावण के पुत्र मेघनाद की पूजा की, हर वर्ष दूज के दिन मेघनाद बाबा को प्रसन्न करने के लिए मेले का आयोजन करते हैं। वही आज भी बड़ी संख्या मे गौंड आदिवासी द्वारा मेघनाद बाबा की पूजन अर्चना की, इस दौरान एक दर्जन के करीब विभिन्न ग्रामो से राड़ के रूप मे लोग पहुंचे ओर पूजन अर्चना की, भेंट चढाई।

बलि प्रथा का आज भी समाज कर रहा निर्वहन-

समय के साथ समाज में बलि की प्रथाएं लगभग बंद हो चुकी है। लेकिन गोंड समाज के द्वारा आज भी इस प्रथा का निर्वहन बखूबी किया जा रहा है। मेघनाद बाबा को प्रसन्न करने व मनोकामना पूर्ण होने पर भेंट के रूप मे मुर्गा या बकरे की बलि चढ़ाई जाती है।

सुरेश करोपे, लाड़कुई

अनोखी लाल निवासी धन्नासा ने बताया कि यह पूजा के दौरान ही बलि दी जाती है। ओर कुछ लोग द्वारा प्रतिकात्मक रूप से पशु को लाया जाता है और पूजा अर्चना के बाद उसकी बलि दी जाती है।

अनोखी लाल

ग्रामीण बताते है कि गोंड समाज के द्वारा रावण पुत्र मेघनाथ को देवता के रूप में पूजा जाता है। जहां मेले के दौरान कई आयोजन भी किए जाते है। धुरेड़ी की रात को भजन का आयोजन होता है तो प्रातः दूज के दिन मेले का आयोजन किया जाता है। जनजातीय बहुल ग्रामो में अलग-अलग तिथियो मे गौंड समाज के देव मेघनाद बाबा के मेले का आयोजन किया जाता है। जहां आसपास के ग्रामों से आए श्रद्धालुओं तीन लकडियों से बने मचान (मेघनाथ बाबा के प्रतीक) के नीचे पूजा अर्चना करते हैं।

श्रद्धालुओं ने लगाए बाबा के जयकारे…

रवि बारिवा ने बताया कि उनके पूर्वजो द्वारा चली आ रही, इस परंपरानुसार से घर मे दुख परेशानी आने पर मनोकामना की जाती है। मन्नतें पूरी होने पर भगवान मेघनाद की पूजा-अर्चना कर बलि चढ़ाई जाती हैं।

रवि बारिवा, लाड़कुई

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