
राजस्थान के साथ ही अन्य कई प्रदेशों में गणगौर का पर्व हर्ष और उल्लास के साथ 01 अप्रैल को मनाया जाएगा। लेकिन 16 दिन की गणगौर पूजा धुलंडी (15 मार्च) से शुरू हो गई है, महिलाएं और युवतियां 16 दिन तक विधि-विधान से गणगौर की पूजा करेंगी।

भैरूंदा- रंगोत्सव होली से ही गणगौर पूजा का आगाज हो जाता है। 16 दिवसीय पूजा 15 मार्च से शुरू हो गई है, आगामी 01 अप्रैल 2025 को पूरे विधि विधान से गणगौर माता पूजी जाएंगी।

माता गणगौर की पूजा चैत्र कृष्ण प्रथम यानी धुलंडी से शुरू होकर चैत्र शुक्ल तृतीया यानी तीसरे नवरात्र को पूरी होती है। यह 16 दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा यूं तो राजस्थान का मुख्य पर्व है, लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ इलाकों में भी यह त्योहार मनाया जाता है। गणगौर को गौरी तृतीया भी कहते हैं, इस बार गणगौर 01 अप्रैल को मनाई जाएगी। आज 21 मार्च 2025 को भैरूंदा अंतर्गत ग्राम लाड़कुई के श्रीराम जानकी मंदिर मे गणगौर की प्रतिमा की स्थापना की गई। यह पूजा 16 दिन तक लगातार चलती है, और 01 अप्रैल को गणगौर के विसर्जन के साथ समाप्त होगा।
गणगौर पूजा का महत्व –

श्रीमती मीना खंडेलवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाने वाला गणगौर पर्व मनाने के लिए कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं घर-घर में गणगौर यानी शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, इसमें ईसर और गौर यानी शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है, आज 21 मार्च 2025 को ग्राम लाड़कुई में गणगौर की प्रतिमा की स्थापना की गई ओर, वही गौर माता को पानी पिलाने के लिए ग्राम के शिव मंदिर स्थित जलाशय के तट पर विभिन्न धातुओं के पात्र व कलश मे जल भरने के बाद समूह के रूप में शीश पर गणगौर रख गाजे-बाजों संग गौर पूजन स्थल पर गौर माता को पानी पिलाने की रस्म पूरी की गई। इसके साथ ही प्रति दिन पूजन अर्चना की जाएगी, यह पूजा 16 दिन तक लगातार चलती है, और 01 अप्रैल को गणगौर के विसर्जन के साथ समाप्त होगा।
ऐसे होती है पूजा –

गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां सुबह पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग-बगीचों में जातीं हैं, वहीं से ताजा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं, पूजा स्थल पर पहुॅचती हैं, इसके बाद मिट्टी से बने शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा और होली की राख से बनी 8 पिंडियों को दूब पर एक टोकरी में स्थापित करती हैं।
16 दिन, 16 छींटे और 16 श्रृंगार –

शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर संपूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब घास और पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। पूरे 16 दिन तक दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी, हल्दी और काजल की लगाई जाती हैं, दूब से पानी के 16 बार छींटे 16 शृंगार के प्रतीकों पर लगाए जाते हैं, गणगौर (गौर तृतीया) को व्रत रखकर कथा सुनकर पूजा पूर्ण होती है।
