कैसे बड़े स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति – स्कूल समय में महुआ बिन रहे स्कूली छात्र…

शिक्षकों की समझाईश बेअसर – अभिभावकों का कहना, घर खर्च के लिए हो जाती है, अतिरिक्त आमदनी – गर्मियों के दिनों में स्कूलों में पढ़ाई की सिर्फ औपचारिकताएं होती है। 

भैरूंदा- शिक्षा विभाग के द्वारा 01 अप्रैल से नवीन शिक्षण सत्र की शुरुआत तो कर दी, लेकिन स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति नगण्य देखी जा सकती हैं। शिक्षक तो बच्चों को पढ़ाने के लिए विभाग के निर्देश पर स्कूल पहुंच रहे हैं, लेकिन बच्चें स्कूल आने की वजाय अपने अभिभावकों के साथ या तो गर्मी की छुट्टी बिताने गांव से बाहर चले गए हैं या फिर अपनी जीविका चलाने में सहायक साबित हो रहे महुआ बिनने में लगे हुए हैं। यह स्थिति क्षेत्र के आदिवासी गांवों में देखी जा सकती हैं, जहां बच्चों का रूझान स्कूल की ओर कम और महुआ बिनने में अधिक हैं। विद्यार्थी भी स्कूल जाने के स्थान पर अपने परिवार के साथ काम करने जंगल में जाना अधिक पसंद कर रहे हैं। कुछ ऐसे ही हालात क्षेत्र के गांव भिलाई टप्पर, कोसमी, सनकोटा, सिराली, भैंसान, महादेव बेदरा, बसंतपुर, टांडी टप्पर, आंबाझिर सहित अनेक गांवो में देखे गए हैं। इन गांवो में जब बच्चों व उनके अभिभावकों से स्कूल में नहीं पहुंचने के संदर्भ में बात की गई तो उनका कहना था कि अभी तो गर्मी की छुट्टी चल रही हैं, इसलिए स्कूल जाने का कोई मतलब नहीं हैं। स्कूल में गर्मी बहुत हैं और पढ़ाई की भी औपचारिकताएं ही पूरी की जा रही हैं। ऐसे में घर खर्च के लिए अतिरिक्त आमदानी बढ़ाने बच्चें हमारे साथ महुआ बिनने जा रहे हैं। आदिवासी गांव के हालात को देखकर समझा जा सकता हैं, कि शिक्षा की जागरूकता को लेकर स्कूली शिक्षकों ने कितने प्रयास किये हैं। 

ज्ञातव्य हैं कि जंगलों और पहाडिय़ों से लगेे सुदूरवर्ती इलाकों के विद्यालयों में अप्रैल माह की भीषण गर्मी में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति में भारी गिरावट देखी जा रही है। कारण वर्तमान समय में महुआ का सीजन है। सुबह के समय विद्यालय की शुरुआत और महुआ गिरने का समय लगभग एक जैसा होने के कारण बच्चे स्कूल जाने के बजाय परिवार के साथ महुआ चुनने में व्यस्त रहते हैं। कई बच्चों को तडक़े सुबह से ही जंगलों में महुआ बीनते हुए देखा जा सकता है. स्थिति यह है कि कुछ बच्चे तो रातभर महुआ के पेड़ों के नीचे डेरा जमाए रहते हैं, ताकि ताजे महुआ को बीन सकें। इसका सीधा असर उनकी शिक्षा पर पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि महुआ से उन्हें कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती है, जिससे घर का खर्च चलाना संभव हो पाता है, ऐसे में शिक्षा और विद्यालय दूसरे पायदान पर चले जाते हैं।

स्कूल चलें हम पर भारी महुआ सीजन अभियान –

सरकार द्वारा विद्यालयों में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाने के लिए विभिन्न अभियान चलाए जा रहे हैं, जिनमें से एक स्कूल चलों हम अभियान हैं, लेकिन महुआ सीजन अभियान इन पर भारी पड़ रहा है। आदिवासी गांवो के कई सरकारी विद्यालयों में उपस्थिति नगण्य हैं ओर यहां पर केवल शिक्षकों की मौजूदगी ही देखी जा सकती है। सरकार के अभियान के तहत जब शिक्षक गांव में बच्चों को लाने का प्रयास करते हैं तो अभिभावक ही उन्हें अपने साथ महुआ बिनने ले जाने की बात कहकर शिक्षकों को बैरंग लौटा देते हैं। शिक्षकों की मानें तो इस समय जंगल में भारी मात्रा में महुआ गिरता हैं, जिसे बिनने के बाद इसका विक्रय किया जाता हैं, ऐसे में ग्रामीणों को अतिरिक्त आय हो जाती है। जिसके चलतें पालक अपने बच्चों को महुआ बिनने के लिए ले जाना अधिक पसंद कर रहे हैैैैैैैैैैैैैैैैैैै। शिक्षकों का कहना है कि हमारे द्वारा किये गए प्रयास पर पारिवारिक जरूरतें और महुआ के मौसम में कमाई का अवसर बच्चों को स्कूल से दूर कर देता है।

कमाई का साधन बना महुआ, पढ़ाई से पहले रोजगार

महुआ आदिवासी क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए आर्थिक संसाधन है, जो उन्हें जीविका चलाने में सहयोग करता है। जंगल में भारी मात्रा में महुआ के पेढ़ लगे हुए हैं, इसके अतिरिक्त कई परिवारों ने अपने घरों में भी इसके पेढ़ लगा रखे है। गर्मी के मौसम में यह अपने आप ही पेढ़ से गिरता है। मुख्य रूप से महुआ अधिकतर तडक़े सुबह गिरता है, ऐसे में आदिवासी परिवार अपने बच्चों को जंगल में साथ लेकर जाते हैं। ताकि अधिक मात्रा में महुआ का संग्रहण हो सके। महुआ बीनने के बाद उसे सुखाकर स्थानीय बाजार में बेचा जाता है. इसकी मांग अधिक होने के कारण ग्रामीण इसे प्राथमिकता देते हैं। इस कार्य में अधिकतर महिलाएं और किशोरियां शामिल रहती हैं, जिससे विद्यालयों में लड़कियों की उपस्थिति पर भी असर पड़ता है।

क्या कहते हैं बच्चें – स्कूली छात्र सौरभ, बिसिया बारेला, ब्रजेश ने बताया कि स्कूल की छुट्टी चल रही हैं। वहां जाने से क्या फायदा। गुरुजी भी थोड़ी देर बाद स्कूल से चले जाते हैं, क्योंकि स्कूल में लाईट की व्यवस्था अस्थायी हैं। पानी भी हमें घर से लेकर जाना पड़ता है। धूप इतनी अधिक हैं कि गर्मी में पढ़ाई भी नहीं हो पाती। खेल मैदान इतना गर्म हैं कि तबीयत खराब होने का डर सताता है। इससे अच्छा तो हम अपने माता-पिता के साथ महुआ बिन लेते हैं, जिससे हमें कुछ पैसे मिल जाते है। 

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