रातापानी अभ्यारण- 90 से अधिक टाइगर मौजूद, बफर जोन में आएंगे गांव, लेकिन नहीं होगा विस्थापन…

रातापानी का जंगल अब होगा टाइगर रिजर्व, जनप्रतिनिधियों व वन विभाग ने की आदिवासियों के साथ बैठक…
टाइगर रिजर्व बनने पर खुलेंगे रोजगार के अवसर…

अमित शर्मा, लाड़कुई/भेरूंदा
रातापानी अभ्यारण में मौजूद 90 से अधिक टाइगरों, सैकडों की संख्या में तेंदूएं, नीलगाय, हिरण सहित अन्य जंगली जानवरों के संरक्षण को लेकर अब इसे टाइगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया तेजी के साथ शुरु हो चुकी है। पिछले दिनों राज्य सरकार के द्वारा सीहोर जिले के आधा दर्जन से अधिक गांव के विस्थापन की प्रक्रिया शुरु किये जाने के संबंध में भी निर्देश जारी कर दिए है। यह गांव वहीं हैं जो रातापानी जंगल के अंदर मौजूद है। इसके अतिरिक्त बफर जोन में आने वाले गांव का विस्थापन सरकार के द्वारा नहीं किया जायेगा। अभ्यारण को लेकर केंद्र सरकार की सैद्घांतिक मंजूरी भी मिल चुकी है। लेकिन रातापानी के जंगल से लगे हुए गांव के विस्थापन की खबर लगते ही आदिवासी चिंतित हो गए थे। जिसे देखते हुए बीते दिवस भेरुंदा अंतर्गत ग्राम लाड़कुई कृषि उपज मंडी मे स्थानीय जनप्रतिनिधि गुरुप्रसाद शर्मा, जिलाध्यक्ष रवि मालवीय, आदिवासी नेता निर्मला बारेला की मौजूदगी में डीएफओ मगन सिंह डाबर ने आदिवासियों की इस शंका का समाधान किया। उन्होंने बताया कि टाइगर रिजर्व बनाने में लाड़कुई व चकल्दी क्षेत्र के किसी भी गांव का विस्थापन नहीं होगा बल्कि यह सब गांव बफर जोन में आएंगे। रिजर्व बनने के बाद यहां पर सुविधाओं का विस्तार होगा, पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होने से आमदनी भी होगी। इसके अतिरिक्त जंगल में रिसोर्ट भी खुलेंगे और पढ़े-लिखे आदिवासी बच्चें गाइड के रूप में अपनी सेवाएं दे सकेंगे। गांव से बफर जोन की दूरी दो किमी से अधिक होगी। इसलिए किसी भी स्थिति में यह बात अपने मन से निकाल दे कि गांव का विस्थापन किया जायेगा। बल्कि गांव में निवास करने वाले सभी आदिवासियों को उनके पूरे अधिकार पहले की तरह ही मिलेंगे।
उल्लेखनीय हैं कि रातापानी में बाघों की संख्या अन्य अभ्यारण्यों से कहीं ज्यादा है। वर्तमान में यहां 90 से ज्यादा बाघ बताए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, तेंदुओं की संख्या भी सैकडों में है। जिसके चलते कई बार लाड़कुई व चकल्दी के जंगलों में तेंदुए की मौजूदगी देखने को मिल रही है। आपको बता दे कि रातापानी अभयारण्य का क्षेत्र भोपाल के साथ ही सीहोर और रायसेन जिले तक फैला हुआ है । यह जंगल घना होने के साथ इसमें वन्य प्राणियों के लिए पानी के पर्याप्त स्रोत हैं। इस कारण रातापानी अभयारण्य के बाघों का मूवमेंट तीनों जिले की सीमाओं तक बना हुआ है। यहां बाघों ने अभयारण्य के अलग-अलग क्षेत्रों में अपना बसेरा बना रखा है। जानकारी के मुताबिक रातापानी जंगल का कुल एरिया 823.065 वर्ग किमी. है। जिसमें रायसेन में 688.034 वर्ग किमी, सीहोर में 135.031 वर्ग किमी, कोर एरिया- 763.812 वर्ग किमी, बफर एरिया- 59.253 वर्ग किमी है।

प्रदेश का आठवां टाइगर रिजर्व होगा रातापानी अभ्यारण

यदि सरकार के द्वारा रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की जाती हैं तो यह प्रदेश का आठवां टाइगर रिजर्व होगा। इससे पहले प्रदेश में पन्ना, संजय दुबरी और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व मौजूद है। वन विभाग की मानें तो रातापानी अभ्यारण में इस समय सबसे अधिक टाइगर, तेंदूआ, रीछ, नीलगाय, बारह सिंगा, सोनकुत्ता, धारीधार लकड़ बग्गा सहित अन्य जंगली जानवरों की संख्या पर्याप्त मात्रा में है।

इनका कहना है
रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया तेज गति से चल रही है। जहां तक गांँवो के विस्थापन की बात हैं तो सीहोर जिले का कोई भी गांव विस्थापित नहीं किया जायेगा। बल्कि इन्हें बफर जोन में रखा जायेगा। उन गांँवो का विस्थापन होना तय हैं तो पहले से रातापानी के जंगल में है। टाइगर रिजर्व बनने के बाद क्षेत्र में सुविधाओं का विस्तार होगा व पर्यटकों की संख्या बढऩे से आदिवासी रोजगार से जुड़ सकेंगे।
एमएस डाबर डीएफओ सीहोर

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